।। यात्रा ।।

गहरी रात गए सो जाती है जब पृथ्वी भी अपने हर कोने के साथ पत्तियाँ भी बंद कर देती है सिहरना सृष्टि में सुनायी देने लगती है सन्नाटे की साँसें स्थिरता भी आकार लेने लगती है स्तब्धता में सोयी पृथ्वी में जागती है सिर्फ रात और चमकते हैं नक्षत्र नींद के बावजूद नहीं आते हैं सपने उसे करती है तब वह कोमल संवाद मैं जीती हूँ तुम्हें उसी में जीती हूँ खुद को मैं सुनती हूँ तुम्हें पर सुनाई देती है अपनी ही गूँज मैं देखती हूँ खुद को जब भी देखना होता है तुम्हें मैं देखती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा अपनी प्रतीक्षा की तरह मैं गुनती हूँ तुम्हारी जिजीविषा अपने सपने की तरह मैं चख...