एक लड़की के भीतर जब उगता और उमगता है प्रेम नवांकुर बीज की तरह वह कविता की देह छूती है अधरों पर गीतों के बोल रखती है एक लड़की के अन्तस् को हरी, मुलायम, शोख, दूब की तरह स्पर्श करता है प्रेम वह पालती है सफेद खरगोश गुलाबी आँखों वाला और भरती है विद्युतीय चपल छलाँगें बचाए रखना चाहती है वह प्रेम से चंचल हुए अपने पाँव के अचंचल निशान मन-वसुधा पर उकेरे प्रणय-कीर्ति के लोक-कथा चित्र एक लड़की के भीतर जब अँगड़ाई लेता है प्रेम वह नहीं तैरना चाहती किसी नव परिचित देह के भीतर सूर्योदय के साथ उतर जाना चाहती है नदी में सुनहरी किरणें समेटने चंद्रोदय के साथ डूब जाना चाहती है रुपहली नदी में धवल, अमर स्वप्न-यथार्थ के लिए एक लड़की के भीतर जब उठती है प्रणय की मादक गंध वह उसे 'महुए' की तरह चूने देती है अपने उर-आँगन में दुधियाने देती है अपनी आँखों में एक लड़की के भीतर जब देह के खलिहान में फसल की तरह तैयार होता है प्रेम वह छींट देती है उसे दोनों मुट्ठी में भर-भर कर जमीन पर चिड़ियों ...