।। महामंत्रोच्चार ।।
















प्रतिदिन
सूर्योदय के साथ
आदित्यस्त्रोत के महामंत्रोच्चार के बाद
सूर्य से
नमित-नयन प्रार्थना की
दमकते प्रणय की
जो प्राण शक्ति बने
और आत्मा को दीप्तमान् करे
अपने प्रकाश-लेप से

अपनी हर धड़कन में
वर्तमान की सुबह में
चीखी हूँ
पक्षियों की चहचहाहट में
प्रेम से अधिक
अपने प्रिय की पुकार में

मेरी आत्मा
प्रिय सहचर की खोज में
हर साँस में
रही है
एकाकी यायावर
 
उसका
आत्मीय
अकेलेपन में
पहचान ले उसे
और बगैर उसके कहे
उसके हृदय की भाषा को सुन
मौन निमंत्रण में
बन जाए
उसका
उसकी देह से भी अधिक
आत्मीय सहचर ।
 
('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह  से)

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