।। अक्षय-स्रोत ।।
















शब्द
तुम्हारी तरह
देखते हैं    मुझे
और मैं
शब्दों को तुम्हारी तरह

ईश्वर के प्रेम की
छाया है     तुम्हारी आत्मा पर
ईश्वर अंश है
तुम्हारा चित्त

तुम्हारे प्रेम में
मैं 'प्रेम' का ईश्वर देखती हूँ

तुम्हें छूकर
मैं प्रेम का ईश्वर छूती हूँ

तुम्हारे कारण
पाषाण में बचा है   ईश्वर

शब्दों में
तुमने रचा है     ईश्वर
क्योंकि
तुमने ही
तुम्हारे अस्तित्व में रचा है ईश्वर

इसीलिए तुममें है
ईश्वर का प्रेम
ईश्वरीय प्रेम
पवित्र पारदर्शी
प्रणय नदी का उद् गम
अक्षय स्रोत ।

('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह  से)

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