।। एकात्म ।।
पत्थर को छूकर जाना
पाषाण का मतलब
पर्वत आरोहण कर
पहचाना पहाड़
नदी में उतर कर जाना
जल का प्रवाह
जलपान कर जाना
तृषा-तृप्ति का सुख
समुद्र में होकर जाना
सागर-सुख
चाँदनी को रात भर
अपने भीतर उतारा जैसे साधना
तुम्हारे प्रणय की सुगंध को छूकर जानी
प्रेम की तासीर
तुममें होकर ही पहचाना
प्रकृति का पुरुष से आत्मीय एकात्म
जो विश्वास माटी से बनता है
मन देह भीतर
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