।। क्रिया-कर्म ।।
आदमी
आहिस्ता-आहिस्ता
खत्म करता है
एक स्त्री के भीतर का
स्त्रीत्व
चूमता है देह
सोख लेता है
देह का देहपन
कि धूमिल होने लगता है
स्त्री का स्त्रीत्व
धीरे-धीरे
काटता-छाँटता है दिमाग
तराशता है दिल
उसकी उम्र ढलने से पहले ही
कुतरता है आत्मा
कि आत्महीन होकर
गिर जाती है अपनी ही देह-भीतर
लाश की तरह
जैसे उसकी देह ही
ताबूत हो उसका ।
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