फुटबॉल में योहन और योहन में फुटबॉल उर्फ़ चमत्कारी खिलाड़ी, खेल गुरू और एक इंसान !
[ पुष्पिता जी की एक पहचान फुटबॉल प्रेमी की भी है । फुटबॉल के प्रति उनका लगाव
जुनून की हद तक है, जो उनकी कुछेक कविताओं में भी अभिव्यक्त हुआ है ।
यहाँ प्रस्तुत 'स्वतंत्र आवाज' में प्रकाशित लेख उनके फुटबॉल प्रेम का
एक जीवंत उदाहरण है । यह लेख इस तथ्य को भी हमारे सामने लाता है कि
फुटबॉल जैसे विषय पर लिखते हुए भी पुष्पिता जी का
काव्य-मन बार बार जाहिर होता रहता है ।
इस लेख को पढ़ना उनकी कविता को पढ़ने जैसा सुख प्रदान करता है । ]
जुनून की हद तक है, जो उनकी कुछेक कविताओं में भी अभिव्यक्त हुआ है ।
यहाँ प्रस्तुत 'स्वतंत्र आवाज' में प्रकाशित लेख उनके फुटबॉल प्रेम का
एक जीवंत उदाहरण है । यह लेख इस तथ्य को भी हमारे सामने लाता है कि
फुटबॉल जैसे विषय पर लिखते हुए भी पुष्पिता जी का
काव्य-मन बार बार जाहिर होता रहता है ।
इस लेख को पढ़ना उनकी कविता को पढ़ने जैसा सुख प्रदान करता है । ]
फुटबॉल
की दुनिया के लिए चौबीस मार्च 2016 स्तब्ध कर देने वाला दिन रहा । पचास
वर्ष से फुटबॉल खेल और इसकी दुनिया को संचालित करने वाले चमत्कारी खिलाड़ी
और खेल गुरू योहन क्राउफ इस दिन नहीं रहे और विश्व का फुटबॉल संसार जैसे
निर्धन हो गया है । योहन क्राउफ फुटबॉल की दुनिया के अब भी बादशाह हैं ।
उन्होंने वैश्विक स्तर पर फुटबॉल की ऐसी विलक्षण पहचान बनाई है कि जब तक
दुनिया रहेगी तब तक फुटबॉल रहेगा और जब तक फुटबॉल रहेगा-योहन क्राउफ रहेंगे
। योहन क्राउफ के देहावसान के बाद से हज़ारों फुटबॉल प्रेमी उनके बारे में
अधिक से अधिक जान लेना चाहते हैं । मीडिया और सोशल मीडिया पर पधारिए तो
फुटबॉल और योहन क्राउफ को श्रद्धांजलि देने उनके चहेतों का संसार उमड़ा हुआ
है । खेलते समय उन्होंने पहनी 14 नंबर की शर्ट को लोग पच्चीस हजार यूरो
यानी लगभग बीस लाख रुपए मूल्य के आसपास खरीद रहे हैं, ऐसे में उनसे जुड़ी न
जाने कितनी और चीज़ें हैं, जो फुटबॉल के संसार की भावनात्मक पसंद बन गई
हैं ।
यूरोपीय
देश कई वर्ष से आर्थिक संकट से ग्रस्त हैं, इधर सीरिया के शरणार्थियों के
आगमन से इन दोनों की अंदरूनी व्यवस्था और चरमरा गई है । पेट्रोल और दूसरी
रोज़मर्रा की चीजों पर टैक्स बढ़ाए गए हैं, जिससे आम जनता के भीतर आक्रोश
की आग सुलग रही है । पेरिस और ब्रेसेल्स के आतंकवादी हमलों ने तो यूरोप को
हिलाकर रख दिया है, लेकिन योहन क्राउफ का जाना इससे बड़ा झटका देने वाली
घटना है । सिद्धहस्त की तर्ज़ पर कहें तो फुटबॉल के सिद्धपाद और अपने समय
के खिलाड़ी के देहावसान की खबर से लगता है कि फुटबॉल का खिलाड़ी ऐसे जाकर
भी नहीं जा पाता है । समय उसे हर काल के लिए सहेजे रखता है, इसलिए हमें भी
एहसास है कि फुटबॉल खेल अतीत और इतिहास होते हुए भी वर्तमान और भविष्य होता
है । नीदरलैंड में 25 अप्रैल 1947 को जन्मे योहन क्राउफ स्पेन के
बारसिलोना शहर में 24 मार्च को अपनी देह से मुक्त हुए तो ऐसे कि जैसे
उन्होंने अपने जाने का समय स्वयं ही निश्चित कर रखा था । सच भी है कि मौत
ऐसे महान लोगों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाती है, क्योंकि उनका इतिहास मौत के
आगे चलता है । योहन क्राउफ ने इन दोनों देशों को विश्व के फुटबॉल खेल का
गढ़ बना दिया है और दोनों देशों के बीच की दूरियां खत्म कर दी हैं तो मौत
उनका क्या बिगाड़ पाई ? उन्होंने फुटबॉल को जिस मुकाम तक पहुंचाया, उससे ये
दोनों एक-दूसरे की देह हो गए, इसलिए फुटबॉल ज़िंदा है तो योहन क्राउफ भी ।
योहन
क्राउफ विश्व के कई फुटबॉल क्लबों के साथ-साथ बारसिलोना के नोकम्प फुटबॉल
क्लब के कोच रहे हैं, लेकिन इससे पूर्व 18 मार्च 1900 को स्थापित नीदरलैंड
के आयक्स क्लब के महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे । हर वर्ष फुटबॉल सत्र की
शुरूआत अम्स्टर्डम एरीना में योहन क्राउफ की शील्ड से शुरू होती रही है ।
उनके निधन के बाद आयक्स के अम्स्टर्डम एरीना का नाम योहन क्राउफ एरीना कर
दिया गया है । भारत और पाकिस्तान की आजादी की जितनी उम्र हुई है, उतने ही
वर्ष के अपने जीवनकाल में योहन क्राउफ ने चमत्कारी खेल से स्वयं को, फुटबॉल
को, नीदरलैंड को विश्व के फुटबॉल प्रेमियों का हृदय बना दिया है । अमरीका
के राष्ट्रपति निक्सन के कार्यकाल में यूएस के स्टेट सेक्रेट्री हेनरी
किसिंजर ने कहा था कि जर्मन दूतावास के द्वारा मेरे पास प्रति सोमवार को
फुटबॉल खेल की सूचनाओं का लिफाफा आया करता था, मैं योहन के खेल का दीवाना
रहा हूं । खेरी लिंकर का मानना है कि खेल को और अधिक प्रभावशाली बनाने का
कार्य फुटबॉल के इतिहास में योहन के अलावा किसी ने नहीं किया है । ब्राजील
के पेले का तो कहना है कि फुटबॉल के महान व्यक्ति को हमने खो दिया है,
जिसकी बहुत महत्वपूर्ण विरासत हम सबके पास है । बॉबी चार्लटन कहते हैं कि
उनके खेलने से खेल में जादुई परिवर्तन आता था, जो आज भी मिसाल बना हुआ है ।
ज्ञातव्य
है कि योहन क्राउफ के 1964 से 1973 तक नीदरलैंड के आयक्स क्लब में खेलते
हुए यह क्लब आठ बार देश का चैंपियन हुआ, पांच बार केएनवीबी का और तीन बार
यूरोपियन चैंपियनशिप जीती, जो अपने आपमें रिकार्ड है । फुटबॉल के संदर्भ
में योहन का मानना रहा है कि फुटबॉल खेल बहुत सहज है, लेकिन सहज खेल खेलना
ही सबसे कठिन है । हम कहें तो कबीर के जीवन के संदर्भ में सहज-साधना की तरह
। योहन प्रायः कहते थे कि फुटबॉल दिमाग़ से खेला जाने वाला खेल है, जिसको
पांव से खेलते हैं, बिना परिणाम के गुणवत्ता लक्ष्यहीन होती है, इसलिए गोल
बनाना और मैच जीतना हर हाल में जरूरी है । सन् 1985-88 तक वे आयक्स क्लब के
मैनेजर रहे और इनके समय में दो बार केएनवीबी कप जीता गया और एक बार कप
वीनर्स कप जीता गया । योहन सन् 1988-96 तक बारसिलोना में मैनेजर रहे और चार
बार ला लीखा, दो बार सुपर कप, एक बार यूईफअ सुपर कप और कप वीनर्स कप
जितवाया । इससे सिद्ध होता है कि वाकई में फुटबॉल जीवनभर योहन क्राउफ का
जीवन रहा । योहन क्राउफ ने फुटबॉल को जीवन दिया और फुटबॉल ने उन्हें। चाहे
यूरोप हो या एशिया, ऑस्ट्रेलिया हो या अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका हो या
दक्षिणी अमेरिका योहन के सिखाए खिलाड़ियों से फुटबॉल की प्रतिष्ठा बनी और
बढ़ी हुई है ।
नीदरलैंड
का आयक्स क्लब फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए ऑक्सफोर्ट यूनिवर्सिटी है तो
बारसिलोना, बोस्टन विश्वविद्यालय सरीखा है, जिस तरह विश्वविद्यालयों के लिए
देश का नाम देने-बताने की जरूरत नहीं पड़ती है, वैसे ही आयक्स क्लब के लिए
पूरी दुनिया में इस क्लब की योहन से पहचान हुई । फुटबॉल खेल यूरोपीय देशों
की जीवन-संस्कृति का हिस्सा है, यह उनकी नागरिक आदतों में शुमार है, उसमें
फिर फुटबॉल मैच देखाना हो या खिलाड़ियों को जानान-मिलना-समझना हो । फुटबॉल
को लोगों की आदत में शुमार करने का बड़ा काम योहन ने ही किया है, जबकि आदत
बनाना आसान काम नहीं है, लगना पड़ता है, लगाना पड़ता है, उन्हें, जिन्हें
उस आदत में ढालना होता है । सन् 1970 के आसपास से ही अपने खेल के प्रदर्शन
से योहन यह बखूबी ताड़ चुके थे कि जनता को इसका दिवाना बनाया जा सकता है और
कैसे ? तरकीब से भी वे भलिभांति वाकिफ थे । उनके पांव में यदि फुटबॉल
खेलने का कौशल था तो दिमाग में आर्थिक और व्यावसायिक युग में फुटबॉल को
वैश्विक शक्ति बनाने का संकल्प भी, जिसे उन्होंने देखते-देखते नीदरलैंड
सहित अन्य देशों में पूरा किया । इसके लिए उन्होंने फुटबॉल क्लब को
व्यावसायिक रूप से समृद्ध करने के लिए आयक्स क्लब में फुटबॉल नर्सरी का
दरवाजा खोला ।
आयक्स
क्लब और उसकी नर्सरी इस समय फुटबॉल का विश्वप्रसिद्ध गुरुकुल है । आजकल
रोनाल्ड द बूर और उनके जुड़वा भाई फ्रांक द बूर आयक्स क्लब के कोच हैं,
जिनके प्रशिक्षण में आयक्स क्लब लगातार चार वर्ष तक देश का चैंपियन हुआ ।
कदाचित यह योहन के बिना संभव नहीं था । फुटबॉल की दुनिया के लिए योहन
क्राउफ सूर्य सरीखे हैं । नई पीढ़ी उन्हें अपना भगवान मानती है । हर मैच
में उन्होंने अनोखे ढंग से गोल बनाए हैं - तीरंदाजियों की तरह । फुटबॉल में
आंखें निशाना साधती हैं, दिमाग खेल के चक्रव्यूह का समीकरण देखता है और
आंखों के संकेत से मस्तिष्क इतनी तीव्रता से इसे पांव से साधता है कि
कभी-कभी टकटकी लगाकर देखने वाले दर्शक भी फुटबॉल के हिट को देखने से चूक
जाते हैं, इसीलिए स्टेडियम में कई कोणों पर कई दूरियों पर कई तरह के कैमरे
लगे रहते हैं - प्रेस फोटोग्राफर्स का हुजूम अलग से तैनात रहता है । अब तो
स्टेडियम में ही तार पर कैमरे टंगे रहते हैं, जो अपनी पैनी निगाह से कुछ भी
छूटने नहीं देते हैं । आयक्स क्लब को विशाल और व्यापक बनाने में उसके
खिलाड़ियों को दूर देशों के क्लबों तक पहुंचाने में योहन क्राउफ की खेल
नीति की अहम भूमिका है, इनके खिलाड़ियों को दूसरे फुटबॅालर देश
ज्यादा-से-ज्यादा राशि में खरीदते है ।
स्पेन
के क्लब, चैंपियन बनने की फिराक में सर्वाधिक खिलाड़ी खरीदते हैं, जबकि
स्वयं बिलियंस के उधार के नीचे दबे हैं । टैक्स बकाया है । बारसिलोना के
खिलाड़ियों का दस मिलीयन यूरो का वार्षिक वेतन ही होता है । मेसी,
रोनाल्डो, सुआरस विश्व के ऐसे ही प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं, जिनके पास हुनर के
साथ-साथ छल भी है, जो खेल में उनकी बॉडी लैंग्वेज से साफ तौर से पकड़ा जा
सकता है । वैश्विक कंपनियां कारों के यूरोपीय उत्पादन, पर्यटन कंपनियां,
बैंक, टीवी चैनल, मॉडल कंपनियां इनकी फाइनेंसर होती हैं । फुटबॉल यदि एक ओर
फुटबॉल संगठनों की आय का जरिया है तो धनी से आम आदमी के मनोरंजन का शगल भी
है । अनेक प्रतियोगिताएं होती हैं, विजेता को मिलीयन यूरो की राशि का नफा
होता है । खिलाड़ियों को जीत के जश्न और यश के मुकुट की सौगात नसीब होती है
। वर्तमान समय में फुटबॉल समृद्धि और प्रसिद्धि का शिखर है । योहन ने अपने
समकालीन खिलाड़ियों के साथ पूरी दुनिया में फुटबॉल की यह पहचान बनाई है ।
खेल कौशल और कोच दक्षता के बल पर उन्होंने संपूर्ण विश्व को एक परिवार में
बदल दिया है । व्यावसायिक उपलब्धियों के लिए जितने हुनरमंद खिलाड़ियों की
जरूरत पड़ती है, उतनी ही आवश्यकता उसके समर्थनों और चहेतों की होती है ।
दुनिया
के किसी भी देश में और विशेषकर यूरोपीय देशों में होने वाले किसी भी
फुटबॉल मैच में स्टेडियम खाली नहीं रहता है । पांच हजार से पचास हजार तक की
संख्या वाले एरीना स्टेडियम की हर सीट बिकी हुई होती है । वह कई महीने
पहले से और आगे के कई वर्षों के लिए खरीदी जा चुकी होती है, जबकि मैच का
रेडियो और टीवी चैनलों पर आंखों देखा हाल भी प्रसारित होता है । योहन
क्राउफ बहुत सहज होकर खेलते थे । मजाल है जो फुटबॉल उनके हिट का कोई गलत या
दूसरा लक्ष्य निकाल ले । हमेशा वे खेल के जश्न में रहते थे और सामने वाले
को भी जश्न में रखते थे । पेनाल्टी के मोह में न तो वे गिरते थे और न ही
किसी को गिराते थे । फुटबॉल ने उनके जीवन को जुनून में तब्दील कर दिया था ।
फुटबॉल मैच जब, जिस टीम के साथ जहां भी मुकर्रर रहता था, उनको उस समय वहां
होना ही होता था, फिर चाहे पानी बरसे या बर्फ गिरे । झरती स्नो के कारण
मैदान के सफेद हो जाने पर फुटबॉल खेलने वाली बॉल ऑरेंज या लाल रंग में बदल
जाती है, पर खिलाड़ी खेलते रहते हैं, गिरते रहते हैं, नब्बे मिनट तक जी-जान
से दौड़ते रहते हैं, अम्पायर की सीटी बजने के पहले तक गोल बनाने में जुटे
रहते हैं, समय उनके लिए गोल में बदल चुका होता है, जब गोल बनता है, तभी
उन्हें अपने भीतर अपनी और समय की धड़कने महसूस होती हैं ।
फुटबॉल
जीत के विश्वास का दूसरा नाम है । आखिरी समय तक खेल में रहने के साहस और
उत्साह का पर्याय है । टीम केंद्रित खेल होने के बावजूद इस खेल में हर
खिलाड़ी के खेल की अपनी अलग से पहचान बनती है, इसी के आधार पर दूसरे देशों
में उनकी खरीद-फरोख्त होती है, इसीलिए टीम के सभी खिलाड़ियों का टीम में
होने के बावजूद उनका अपना अस्तित्व रहता है । वे चाहें कीपर हों या न हों,
कैप्टन हो या न हों, लेकिन यदि वह गोल बनाते हैं और लगातार गोल बनाने और
खेल में महारत हासिल करते हैं तो उनकी पहचान वैश्विक हो जाती है, वे फुटबॉल
की दुनिया के बादशाह और सारी दुनिया उनकी दीवानी हो जाती है । विश्व में
जितने खिलाड़ी हैं, कोच हैं, सपोर्टर हैं, रिपोर्टर हैं, सबके पास योहन
क्राउफ हैं - स्मृतियों में, संस्मरणों में, किस्सों में, वे हर एक की
बातों में शामिल हैं, फिर वे बातें चाहें घर में हों या कॉफी हाउस में ।
इसीलिए यह जानकर पूरी दुनिया को आश्चर्य हुआ कि 24 मार्च बृहस्पतिवार को
योहन का आकस्मिक निधन नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने अपने परिवार और परिचितों
की जानकारी और उपस्थिति में मृत्यु का मौन रूप में वरण किया था ।
वैसे
तो कुछ माह पूर्व 2015 में उनके फेफड़ों के कैंसर से ग्रस्त होने की सूचना
मिली थी, क्योंकि सिगरेट उनकी आदतों में शामिल थी । उसका जितना आघात योहन
को लगा था, उससे अधिक उनके चहेतों को उनको कैंसर होने से लगा । उनके
देहावसान की खबर जब मैंने कार के रेडियो में सुनी तो मैं सन्न रह गई थी । वे इतनी जल्दी विदा ले लेंगे, यह लोगों की कल्पना से परे था,
क्योंकि मृत्यु उन्हें आई नहीं थी, उन्होंने बहुत सुविचारित ढंग से अपने
फुटबॉल प्रेमियों को ध्यान में रखकर मृत्यु को आमंत्रित किया था, जैसे कि
शुक्रवार से सोमवार तक यूरोप सहित पश्चिमी देशों में अवकाश रहेगा,
सामान्यजन टीवी पर पूरी आत्मीयता के साथ उन्हें देख सकेगा और ऐसा ही हुआ ।
उस दिन लोग रोम से जारी होने वाले धार्मिक अनुष्ठान के कार्यक्रमों को
अनदेखा करते हुए योहन क्राउफ से संबंधित हर कार्यक्रम को देखते रहे। यानी
उस दिन धर्म पर फुटबॉल भारी थी, योहन भारी थे । उत्कृष्ट खिलाड़ी होने के
साथ-साथ वे अद्भुत दूरदर्शी व्यक्ति थे । जीवन के मोह से मुक्त फुटबॉल के
मोह से ग्रस्त थे । नीदरलैंड के आयक्स क्लब और बारसिलोना के नीकम्प क्लब को
उन्होंने अपना जीवन देकर फुटबॉल की दुनिया का गढ़ बना दिया है और यह दोनों
देश खेल के स्तर पर यदि योहन के दोनों पांव हैं तो दूसरी ओर आंखें भी ।
योहन
के देहावसान की खबर मिलते ही आयक्स स्टेडियम का नाम योहन क्राउफ स्टेडियम
रख दिया गया है । जैसे देह छोड़ने के बाद योहन क्राउफ ने स्टेडियम के रूप
में जन्म ले लिया हो । कितने ही फुटबॉल प्रेमियों ने उस दिन अपने नवजात
शिशुओं का नाम योहन रखा । होनहार खिलाड़ी 14 नंबर धारण कर हर बार योहन की
फुटबॉल शक्ति को विश्व में पुर्नजीवित करते रहेंगे । वे अपने दो पुत्रों और
एक बेटी के पिता हैं, लेकिन वस्तुतः वे फुटबॉल खिलाड़ियों की मानसिकता
हैं, जो उन्हें हमेशा प्रशिक्षण देते रहेंगे । जीसस के जाने की खबर तो
दुनिया के लिए किस्सा है, लेकिन योहन का जाना हकीकत है, इसलिए आमजन बहुत ही
आहत और दुखी है । लोगों के गले रूंधे हुए हैं । यूरोप, लातिन अमेरिका,
कैरेबियाई देशों, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया का शायद ही कोई नागरिक हो, जिसने
योहन के फुटबॉल के करतब न देखे हों । बारसिलोना, जहां वे कोच थे और अपने
जीवन की अंतिम सांस ली, वहां के स्टेडियम में लोगों के हस्ताक्षर का चार
दिन तक तांता लगा रहा । उसी तरह नीदरलैंड के आयक्स स्टेडियम में उनके
चहेते, आंखों में आंसू लिए हुए अपने उद्गार और पुकार को अपनी हृदय की
स्याही से लिखने में लगे हुए थे ।
आयक्स
क्लब की शर्ट पहने हुए उस पर चौदह लिखवाए हुए, उनको याद करते हुए भावभीनी
श्रद्धांजलि देने में लगे हुए थे । फुटबॉल खेल की चौदह संख्या योहन क्राउफ
के नाम हो गई है, वे इसी नंबर से पहचाने गए और अब यह नंबर पूरी दुनिया में
उनकी पहचान बन गया है । योहन के देहावसान के बाद सप्ताहांत में आयक्स एरीना
बनाम योहन क्राउफ स्टेडियम में फ्रांस की फुटबॉल टीम व नीदरलैंड की नेशनल
टीम में दोस्ताना मैच हुआ । मैच के चौदहवें मिनट में खेल रुक गया और सबने
उन्हें मौन रहकर श्रद्धांजलि दी । उसी तरह 29 मार्च को इंग्लैंड व नीदरलैंड
के दोस्ताना मैच के चौदहवें मिनट में खेल रुक गया और योहन क्राउफ को सलामी
दी गई । समय का चौदहवां मिनट फुटबॉल प्रेमियों ने योहन के नाम कर दिया है ।
आयक्स एरीना में योहन की दैहिक उपस्थिति के बिना यह पहला मैच खेला गया,
जिसमें उनकी सीट पर उनके नाम की और चौदह की संख्या को धारण किए गुलाबों के
फूलों का भव्य गुलदस्ता बैठा था । फूलों के माध्यम से योहन क्राउफ ने वह
फुटबॉल मैच देखा, क्योंकि नार्द हालैंड दाख लाख के अखबार में एक कार्टून
छपा था कि योहन के लिए स्वर्ग का द्वार खुल गया है और वे फुटबॉल खेलते हुए
वहां जाकर फुटबॉल खेल की नई दुनिया बसाएंगे ।
योहन
क्राउफ के समय में खिलाड़ी फुटबॉल से खेलते थे । आज के अन्य क्लबों के
खिलाड़ियों की तरह फुटबॉल खिलाड़ियों की देह से नहीं । उन्हें धकियाते,
मुकियाते या चुटवाते नहीं थे । आयक्स खिलाड़ी आज भी योहन की खेल पद्धति से
खेलते हैं न कि गोल बनाने की जगह पर विपक्षी खिलाड़ी से स्वयं ही टकराकर
गिर पड़ते हैं, जिससे अम्पायर यह समझे कि आयक्स खिलाड़ी ने धक्का दिया है ।
आज के समय में विश्व की बहुत कम फुटबॉल टीमें हैं, जो हुनर और कौशल को
अख्तियार करके फुटबॉल खेलती हैं, जबसे इस खेल ने व्यवसाय का रुख बनाया है,
तब से यह खेल-खेल से अधिक छल-प्रपंच का अखाड़ा हो गया है । जोश और जश्न की
जगह यह जंग में बदलता जा रहा है । उम्मीद है कि योहन के जाने पर उनके
फुटबॉल खेल की कला की फिर वापसी से फुटबॉल की दुनिया का दर्शन बदलेगा,
जिससे फुटबॉल प्रेमियों को वही आनंद हासिल होगा, जो वह योहन क्राउफ के समय
अनुभव करते थे ।
योहन
क्राउफ हठी थे । योहन अक्सर कहते थे यदि कोई सच्चे मन से सुनना चाहे तब तो
मैं उसे और ठीक से बताऊं, ऐसे ही क्यों मैं अपना समय बर्बाद करुं । योहन
क्राउफ उत्कृष्ट फुटबॉल खेल के जेनेटिक कोड हैं । उनके हिट के पैंतरे गोल
बनाने के बीजमंत्र हैं । वे अपने मानस की सनक से खेल खेलते थे, इसलिए वे जब
और जो उचित लगता था, निर्णय लेते थे, फिर वे चाहे जितने अकेले पड़ जाएं ।
भविष्य में समय और फुटबॉल की दुनिया के लोग उनके साथ हुए और रहेंगे । अपनी
टीम की जीत के लिए योहन विरोधी टीम के चक्रव्यूह को तोड़ना बखूबी जानते
थे, इसलिए वे मृत्यु के चक्रव्युह को भी जीत गए ।
योहन अजेय हैं और फुटबॉल की दुनिया के वह जैसे अजातशत्रु हैं ।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !
योहन अजेय हैं और फुटबॉल की दुनिया के वह जैसे अजातशत्रु हैं ।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !
('स्वतंत्र आवाज' से साभार)
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