।। देह की चाक से ।।
                  सब कुछ   साँस ले रहा है   मेरी देह में   संपूर्ण सृष्टि   तुम्हारी प्रकृति बनकर   एक अंश में   धड़क रही है   मेरे भीतर     अधरों में अधर   आँखों में आँखें   साँसों में साँसें   हथेली में स्पर्श   हृदय में साँस   ले रही है तुम्हारी ध्वनि   अनहद नाद की तरह     अपने सर्वांग में   मैं जीती हूँ   तुम्हारा सर्वस्व   तुम्हारे शिवत्व को   साध रही हूँ   अपनी शक्ति में   तुम्हारा अंतस और बाह्य   गढ़ रही हूँ   अपनी देह की चाक में   कुम्हारिन की तरह     तुममें   खुद को खोकर ही जाना है   प्रेम में जीना   और अर्धनारीश्वर   हो जाना   लेकिन   सर्वस्व विसर्जन की   समर्पिणी साधना के बाद     देह के ब्रह्मांड में   नव नक्षत्र की तरह   अपनी धड़कनों में   चमक रहा है   तुम्हारा प्रणय   देह की कांति बनकर     स्फूर्ति रच रही है   मेरे ही भीतर प्रेम   प्रेम का स्थायी सुखोत्सव     गर्भ की आँख में   लगाया था तुमने काजल   लाल आँसू बन कर   रिस गया वह     गहराई से जिए गए   सघन संबंधों को   भरा था गहरे अर्थ से   कि इससे पहले   जैसे यह शब्द   अर्थ के बिना था     अनुभूति की   दुग्ध नलिकाओं से   ...