।। आँसू छुपाकर ।।
आँसू छुपाकर
रोती हैं आँखें
जैसे
नजरें बचाकर
मिलती हैं नजरें
ओंठ सहेज रखते हैं
स्पर्श का कोमल सुख
जैसे
शब्दों में शेष है
नाजुक अर्थ-छुअन
यादें,
याद करती हैं
यादों की सुगंध
मन के
कहीं कोना भर मटियाली जगह पर
उग आता है प्रिय के ओंठों से लगाया
प्यार का पेड़
कि पूरी देह
'कल्पवृक्ष' से भी
जादुई हो जाती है
जिस पर
उकेरा जा सके
तुम्हारा नाम
क्योंकि तुम
अनोखे प्रणय के आविष्कर्ता हो
तुम्हारी आँखों के मिलान
और ओंठों के स्पर्श से
जन्म लेते हैं नए शब्द
अपने अद् भुत नयनालिंगन में
रचते हैं
बिना छुए
छुअन की अनबोली
मीठी भाषा
जिसका स्वाद
पूरी देह में घुलकर
रचता है मिठास का आनंद
स्वाद से परे जाकर ।
('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह से)
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