पुष्पिता अवस्थी की कविताएँ उस भाव-संसार और उन भाव-दशाओं का ज्ञापन-उद्घाटन हैं जिनके बिना मनुष्य-चित्त के भीतरी सौंदर्य को परख पाना संभव नहीं है

'शब्द बनकर रहती हैं ऋतुएँ', 'अक्षत' और 'ईश्वराशीष' के बाद 'ह्रदय की हथेली' से पुष्पिता ने प्रणय, प्रतीक्षा, विरह, आतुरता, समर्पण और आराधना की लौकिक अनुभूतियों को लोकेषणा के सँकरे दायरे से बाहर निकाल कर जैसे एक आध्यात्मिक सिहरन में बदल दिया है । 'आँसू दुनिया के लिए आँख का पानी है/ लेकिन तुम्हारे लिए दुःख की आग है' कहते हुए कवयित्री ने प्रबंधन-पटु समय में प्रेम की एक सरल रेखा खींचनी चाही है । उसके यहाँ 'प्रेम के रूपक' नहीं हैं, प्रणय का पिघलता ताप है, आँखों की चौखट में विश्वास की अल्पना है, अन-जी आकांक्षाओं की प्यास है, प्रेम का धन-धान्य है, स्मृति के कुठले में सँजोए अन्न की तरह अतीत का वैभव है । अचरज नहीं कि कवयित्री खुद यह कहती है - 'इन कविताओं की व्यंजना आकाश की तरह निस्सीम है और आकाश गंगा की तरह अछोर भी । इनके अंदर की यात्रा मन के रंगों-रचावों की यात्रा है, रस-कलश की छलकन है । सृजन के राग का आरोहण और कृत्रिमता के तिमिर का तिरोहण है ।' प्रेम के उद्दाम आदिम संगीत से होती - प्रेम का गान करने और उसका मान रखने वाले कवियों यथा कालिदास, जयदेव, विद्यापति, घनानंद की परंपरा की ही धात्री पुष्पिता फिर एक बार पुण्य के पारावार में संतरण करना चाहती हैं, अपनी गंगा में प्रिय की यमुना को जीते हुए कृष्ण को राधा-भाव और राधा को कृष्ण-भाव में जीते हुए देखना चाहती हैं । उनकी पदावलियों में अनुरक्त और विदग्ध अनुभवों - दोनों की उमगती कसक भरी है, रचनेवाले के भीतर जैसे अकेलेपन की पिघलती मोमबत्ती । शब्दों के ताप में प्रणय की तपश्चर्या है, प्रेम को पृथ्वी की पहली और अंतिम चाहत की तरह महसूस करने की उत्कंठा है । पुष्पिता की कविताएँ प्यार की पवित्र जाह्नवी को दिनोंदिन मैला कर रहे समय के बावजूद देह की आकाश गंगा में तैरकर आँखें पार उतर जाना चाहती हैं - ठहरे हुए समय से मोक्ष के लिए । इन कविताओं का सलीकेदार अपनत्व मन पर एक ऐसी छाप छोड़ता है जैसे इन अनुभूतियों के साथ, पढ़ने वाला भी सह-यात्रा कर रहा हो ।
पुष्पिता की प्रेम कविताओं का विन्यास अपने समकालीनों से बहुत अलग है । उनकी ही एक कविता 'पुनर्जन्म का सुख' की पंक्तियाँ कहती हैं - 'सारी स्तब्ध गति के बावजूद/ मैं उस तरह नहीं चल रही/ जैसे दुनिया दौड़ रही है/ क्योंकि मैं जानती हूँ/ जहाँ गति होती है/ वहाँ गहराई नहीं होती है बहुत ।' यह जो अलग-सा होना-दिखना और चलना है; यह जो गति नहीं, गहराई की चिंता करना है - यही पुष्पिता की कविताओं की शख्सियत है, ताकत है । केदारनाथ सिंह की एक कविता की एक पंक्ति है - 'इस समय सड़क पर चल रहा कोई भी व्यक्ति मेरा समकालीन नहीं है ।' इस वाक्य की रोशनी में पुष्पिता की कविताएँ ठीक से समझी जा सकती हैं । उसे गति नहीं, गहराई की परवाह है; शब्द नहीं, संवेदना की परवाह है - तभी तो उसकी लेखनी से 'देह-कुसुम' और 'देह की चाक से' जैसी कविताएँ फूटती हैं - शिशु-जन्म की कल्पना, उत्सवता और कामना से भरी । एक भिन्न किस्म की नवता-नवीनता का आस्वाद है इन कविताओं में - अधरों ने शब्द से बनाई है - अल्पना और धड़कनों ने प्रतीक्षा की लय में गाए हैं - बिल्कुल नए गीत, एक तरल-सजल संवेदना जैसे हृदय की हथेली पर रची हुई हो ।
यह केवल एक कथन भर नहीं है कि 'प्यार से अधिक कोमल और रेशमी कुछ नहीं बचा है/ पृथ्वी पर जीने के लिए ।' और संग्रह की आखिरी कविता 'नदी में नाव' में तो जैसे कवयित्री की रचना-प्रक्रिया का समूचा सत्त्व समाया हुआ है : थोड़ा-सा धैर्य, थोड़ा-सा मौन, थोड़ी-सी आस्था, थोड़ी-सी आकांक्षा, थोड़े-से स्वप्न, थोड़ी-सी ध्वनियाँ और इन सबने रचे हैं कुछ अनरचे शब्द । कहना न होगा कि पुष्पिता की ये कविताएँ उस भाव-संसार और उन भाव-दशाओं का ज्ञापन-उद्घाटन हैं जिनके बिना मनुष्य-चित्त के भीतरी सौंदर्य को परख पाना संभव नहीं है । जिसके भीतर प्रेम की थोड़ी-सी भी नमी बची है, उसे ये कविताएँ ह्रदय की हथेली से थपकियाँ देंगी - जीवन के एक नए आलोक और आश्वस्ति की तरफ ले जायेंगी तथा अपना बना लेंगी ।
(यह टिप्पणी राधाकृष्ण प्रकाशन से वर्ष 2007 में प्रकाशित कविता संग्रह 'ह्रदय की हथेली' के फ्लैप पर प्रकाशित है)

टिप्पणियाँ

  1. हृदय की हथेली का यह फ्लैप मैटर डॉ ओम निश्‍चल द्वारा लिखा गया है।

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  2. ओम जी, पहले तो हम इस बात के लिए क्षमा चाहेंगे कि यह जानकारी हम नहीं दे सके । इसे हमें ही यहाँ बताना चाहिए था । यह दरअसल इसलिए हुआ क्योंकि संग्रह में यह सूचना थी नहीं और पुष्पिता जी से हम यह जानकारी ले नहीं सके । यह बता कर हम अपनी गलती पर कोई पर्दा डालने की कोशिश नहीं कर रहे हैं - हम ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हैं । यह जानकारी यहाँ आपने उपलब्ध कराई इसके लिए हम आपके अत्यंत आभारी हैं । इस जानकारी से इस आलेख का महत्व और बढ़ गया है । ओम जी, पुनः आभार ।
    - ब्लॉग व्यवस्थापक

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