।। झील का अनहद-नाद ।।
कोमो झील की
तटवर्ती उपत्यकाओं में बसे गाँवों में 
तेरहवीं शताब्दी से बसी हैं   इतिहास की बस्तियाँ 
शताब्दी ढोतीं 
प्राचीन चर्च के स्थापत्य में
बोलता है   धर्म का इतिहास 
इतिहास की इमारतें 
खोलती हैं   अतीत का रहस्य 
सत्ता और धर्म के युद्ध का इतिहास
सोया है   आल्पस की 
कोमो और लोगानो घाटी में 
झूम रहा है   झील की लहरियों में 
अतीत का युद्धपूर्ण इतिहास 
वसंत और ग्रीष्म में
झील के तट में गमक उठते हैं 
फूलों के रंगीले झुंड 
रंगीन प्रकृति
झील के आईने में 
देखती है   अपना झिलमिलाता 
रंगीन सौंदर्य 
झील का नीलाभी सौंदर्य
कि जैसे पिघल उठे हों 
नीलम और पन्ना के पहाड़ 
प्रकृति के रसभरे आदेश से 
झील के तटीले नगर-भीतर
टँगी हैं पत्थर की ऐतिहासिक घंटियाँ 
पथरिया आल्पस के 
सुदृढ़ता का राग 
गाती हैं अनवरत   झील की तरंगे 
तट से लगकर ही
सुना जा सकता है जिसका अनहद नाद 
और जल के सौंदर्य में 
बिना डूबे ही 
पिया जा सकता है   जल को 
जैसे आँखें जीती हैं 
झील-सुख 
बग़ैर झील में उतरे-उतराये 
झील के दोनों पाटों के गाँव घर
अपनी जगमगाहट में मनाते हैं    रोज़ 
देव-दीपावली 
जैसे काशी की कार्तिक पूर्णिमा 
होती हो रोज़ 
झील के मनोरम अभिवादन में ।
(नए प्रकाशित कविता संग्रह 'गर्भ की उतरन' से)
(नए प्रकाशित कविता संग्रह 'गर्भ की उतरन' से)

 
 
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