।। अपने ही अंदर ।।

आदमी के भीतर
होती है    एक औरत
और
औरत के भीतर
होता है    एक आदमी ।

आदमी अपनी ज़िंदगी में
जीता है    कई औरतें
और
औरत ज़िंदगी भर
जीती है    अपने भीतर का आदमी ।

औरत
अपने पाँव में चलती है
अपने भीतरी आदमी की चाल
बहुत चुपचाप ।

आदमी अपने भीतर की औरत को
जीता है    दूसरी औरतों में
और
औरत जीती है
अपने भीतर के आदमी को
अपने ही अंदर ।

(नए प्रकाशित कविता संग्रह 'गर्भ की उतरन' से)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

।। सुख का वर्क ।।

।। अनुभूति रहस्य ।।

सूरीनाम में रहने वाले प्रवासियों की संघर्ष की गाथा है 'छिन्नमूल'