।। अनुपस्थिति में ।।
तुम्हारी अनुपस्थिति में
होता है
सिर्फ तुम्हारा प्रेम
देह नहीं
देह के इतर
आँखों की स्मृति में
शेष रहता है
तुम्हें देखकर छूने का
तरल तोष
देह के स्मृति-कोश में
संचित होता है
स्पर्श का आत्मीय विश्वास
आत्मा में
शेष रहता है
सघन तृप्ति का
अमिटबोध
तुम्हारी अनुपस्थिति में
नहीं होती अपेक्षाओं की परिधि
कुछ खो जाने का भय
समय के रिसकर
फिसल जाने की चिंता
सिर्फ होती है
तुम्हारी न हारने वाली
हेरती दृष्टि
नहीं होती हैं
तुम्हारी आसक्ति की सिलवटें
न ही तुम्हारा देह-मोह
न ही तुम्हारी बेचैनी
और न ही क्षण-भर में
सब कुछ
अपनी अंजलि में समेट लेने की
उद्दाम जिजीविषा
तुम्हारी अनुपस्थिति में
होता है
सिर्फ तुम्हारा प्रेम
देह नहीं
देह से इतर ।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...अनुपस्थिति में प्रेम ....देह की अनुपस्थिति...वाह
जवाब देंहटाएं