।। ढाई आखर ।।


















कबीर का ढाई आखर
समुद्र तट पर
साथ-साथ
लिखने के लिए
चुना है तुम्हें
जैसे कोरा सफ़ेद कागज ।

पूर्णिमा की चाँदनी
अपनी आँखों से
तुम्हारे ह्रदय की आँखों में
रखने के लिए
नए सपनों ने
चुना है तुम्हें ।

प्रणय का पिघलता ताप
हथेली का दमकता आर्द्र अमृत
तुम्हारी हथेली में
रखने के लिए
चुना है तुम्हें
जैसे आत्मा के सहचर हो तुम ।

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