।। पुकारती है पुकार ।।
अन्याय के विरुद्ध आत्मा चीखती है अक्सर
पर, कोई नहीं सुनता सिवाय आत्मा के ।
झूठ के विरुद्ध आत्मा रोती है अक्सर
पर, सिर्फ़ आँखें देखती हैं सच्चे आँसू ।
सच्चाई के लिए भूखी रहती है आत्मा प्रायः
पर, कोई नहीं समझता है आत्मा की भूख ।
थककर
अंततः
उसकी आत्मा पुकारती है उसे ही अक्सर
सिर्फ वही सुनती है अपनी चीख
सिर्फ वही देखती है अपने आँसू
सिर्फ वही समझती है अपनी भूख
सिर्फ वही समझती है अपनी भूख
सिर्फ वही सुनती है अपनी गुहार
और पुकारती है अपनी आत्मा को
चुप हो जाने के लिए ।
वह जानती है क्योंकि
सब एक किस्म के
बहरे और अंधे हैं यहाँ
वे नहीं सुनते हैं
आत्मा की चीख
वे नहीं देखते हैं
आत्मा के आँसू ।
अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंअब भी
जवाब देंहटाएंतुम सुन पाती हो अपनी चीख
तुम देख पाती हो अपने आंसू
तुम समझ पाती हो अपनी भूख
नमन तुम्हारे हौसले को
चारो ओर बहरे और अन्धें हैं
और मैं इनमें शामिल हूँ |