सूरीनाम देश के भारतवंशी इस देश में अपनी पीढ़ियों के संघर्ष की आज 140 वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं । एक संवेदनशील व्यक्ति और एक रचनाकार के रूप में पुष्पिता अवस्थी ने सूरीनाम के आर्थिक-सामाजिक-साँस्कृतिक परिवेश को तथा उस परिवेश में भारतीयों की सक्रिय भागीदारी, संलग्नता और योगदान को देखने/समझने का महती प्रयास किया है । अपने इस प्रयास को पुष्पिता ने अपनी विभिन्न रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त भी किया है । सूरीनाम से संबंधित उनकी रचनाओं के ढेर में से हम यहाँ उनकी एक कविता प्रस्तुत कर रहे हैं, जो उनके कविता संग्रह 'ईश्वराशीष' में प्रकाशित हुई है । ।। स्मृतियों का नरम सुख ।। सूरीनाम नदी-तट से गंगा-तट के लिए चिट्ठी लिखने से पहले सादे कागज को पारामारिबो की धूपीली-धूपीली धारदार आँच में सेंककर और अधिक उजला किया रात की स्याह हथेलियों के अंधे छापे से बचाकर कोरे कागज को चाँद की तरल चाँदनी से भिगोकर एकसार शब्द लिखे बिना अक्षरों के अनुभूत करने वाली अनुभूतियों की भाषा लिखी सादे कागज को मन की चंचल स्मृतियों का नरम सुख पिलाया सूरीनाम की वासंती रंग-गंध