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अगस्त, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।। सजल ।।

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उसने अपनी माँ का बचपन नहीं देखा पर बचपन से देखा है उसने अपनी माँ को । जब से समझने लगी है अपने भीतर का सब कुछ और बाहर का थोड़ा-थोड़ा लगता है उसकी माँ की तरह की औरत आकार लेने लगी है उसके भीतर वैसे ही गीली रहती हैं आँखें वैसे ही छुपाकर रोती है वह । दुःख से ललाये गालों को देख किसी के टोकने पर तपाक बोल पड़ती है वह प्रेम-सुख से बहुत सुंदर हो रही है वह इसीलिए कपोल हैं लाल और आँखें सजल ।

।। एक दूसरे में ।।

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चिड़िया की देह का हिस्सा होकर भी कुछ पंख चिड़िया की उड़ान में शामिल नहीं हैं । पर्वत होने पर भी शिखर बनने से रह जाते हैं पहाड़ के कुछ हिस्से । हवाएँ लिखती हैं उन पर चढ़ाई की वेदना । नदियाँ अपनी तरल धार के प्रवाह में हथिया कर बहा लाती हैं उन्हें । नदी में घुल जाते हैं शिखर शिखर के रंग को रँग कर नदी कभी हो जाती है शिखर शिखर हो जाता है नदी रेतीला, रुपहला और कभी गेरुई और मटियाला । दोनों की देह विसर्जित एक दूसरे में एक दूसरे के लिए ।

।। हम दोनों ।।

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विदेश प्रवास में हम दोनों प्रवासी शब्द की तरह हैं हेमचन्द्र के शब्दानुशासन से परे पाणिनी के अष्टाध्यायी-व्याकरण से दूर शब्दकोष से परे आखिर, मैं और तुम शब्द ही तो हैं शब्दों में साँस लेती हुई धड़कने नवातुर अर्थ के लिए आकुल सघन-घन-कोश में आँखें पलटती हैं मेघों को पृष्ठ-दर-पृष्ठ कभी फूलों के पन्नों को उलट-उलट सूँघती हैं सुगंध का रहस्य कभी सूरीनाम और कमोबेना नदियों से पूछती है अनथक प्रवाह का अनजाना रहस्य हम दोनों 'प्रवासी' शब्द की तरह हैं अधीर और व्याकुल अंतःकरण के वासी नाम शब्दों की तरह ओठों की मुलायम धरती पर खेलते हैं स्नेह-पोरों से पलते हुए बढ़ते हैं शब्द समय में समय का हिस्सा बन जाने के लिए अंश में अंशी की तरह रहते हैं शब्द जैसे विदेश में           समाया रहता है स्वदेश जैसे मुझमें बसा रहता है           तुम्हारा आत्मीय अर्थ-बोध ।

'विन्टरकोनिंग' कहानी का एक और अंश (6)

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गोल्फ अमीरों का खेल है, अपनी इस धारणा के नाते उसने कभी अमीरों के इस खेल की ओर देखा तक नहीं था । खेल तो खेल …स्पोर्ट्स की ख़बरों और अख़बारों में छपती तस्वीरों और पत्रिकाओं के प्रचार पृष्ठों पर गोल्फ की गेंद तक को वह नहीं निहारती थी । लेकिन अब वह गोल्फ के मैदान में है …और इस खेल को सीखना शुरू किया है । पहली दफा अपने गोल्फ शिक्षक को एक घंटा सिखाने के लिए पचास यूरो देते समय उसे लग रहा था …बस…अब अगली बार गोल्फ खेलने के लिए कोई दिन …समय …तिथि नहीं निश्चित करेगी । नो एपाइंटमेंट एट ऑल । मन ही मन रोप की हथेली में पचास यूरो मतलब ढाई हज़ार से अधिक की रकम रखते हुए शीला ने मन से उन्हें नमस्कार किया था । लेकिन उसके खेल की शुरुआत अच्छी होने के कारण और उसके ट्रेनर रोप के बेहतर तरीके से टिप्स दिए जाने के कारण उसे भीतर से यह लगा था कि वह गोल्फ खेल सकती है । फिर उसके पति ने भी गोल्फ के लिए उससे बहुत ज़िद की थी । गोल्फ के प्रति उसकी रूचि जगाई थी । उनका मानना है कि गोल्फ से 'जीवन के साथ का' और 'साथ के जीवन का' अद्भुत सुख महसूस किया

।। मन-माटी ।।

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प्रेम धरती के अनोखे पुष्प-वृक्ष की तरह खिला है तुम्हारे भीतर अधर चुनना चाहते हैं वक्ष धरा पर खिले पुष्प को । जिसमें तुम्हारी मन-माटी की सुगन्ध है अद्भुत । तुम्हारे ओठों के तट से पीना चाहती हूँ प्रेम-अमृत-जल शताब्दियों से उठी हुई प्यार की प्यास बुझाने के लिए ।

।। प्रकाश-सूर्य ।।

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मौन प्रणय लिखता है शब्द एकात्म मन अर्थ मुँदी पलकों के एकान्त में होते हैं स्मरणीय स्वप्न प्रेम उर-अन्तस में पिरोता है स्मृतियाँ                स्मृतियों में राग                राग में अनुराग                अनुराग में शब्द                शब्द में अर्थ                अर्थ में जीवन                जीवन में प्रेम                प्रेम में स्वप्न प्रणय-रचाव शब्दों में होता है सिर्फ प्रेम जैसे सूर्य में सिर्फ प्रकाश और ताप ! 

।। स्नेह-ग्रंथ ।।

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देह नेह-ग्रंथ है अधर पृष्ठ-दर-पृष्ठ पर लिखते हैं बोले हुए अनबोले शब्द चुपचाप कि बिछोह के व्याकुल क्षणों में फड़फड़ाती है देह शब्द-पक्षी की तरह शब्द उड़ जाना चाहते हैं प्रिया के देह-पृष्ठ से प्रिय के देह-पृष्ठों से गुँथने के लिए ।

'विन्टरकोनिंग' कहानी का एक और अंश (5)

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शेखर और शीला घर पहुँचे । शेखर ने विशेष चाभी लगाकर अपने अपार्टमेंट का प्रवेश-द्धार खोला । लिफ्ट का बटन दबाया । लिफ्ट में उन्हें अपनी ही बिल्डिंग की ओल्ड डच लेडी रित मिली । उनका चेहरा बहुत उदास था । शीला ने आगे बढ़कर उनसे पूछा, 'सब कुछ ठीक है …।' रित ने धीमी और रूँधी हुई बुझी आवाज में डच में जबाव दिया । 'परसों रात ग्यारह बजे विम को ब्रेन हेमरेज हो गया था । चेहरा और सिर बुरी तरह सूज और फूल गया था । मैं तो बहुत डर गई थी । अब बायाँ हाथ-पाँव पैरालाइज्ड हो गया है …न कुछ देख पाते हैं और न बोल पाते हैं …पूरे सिर में खून इस तरह फैल गया है और भर गया है कि कैट-स्कैनिंग भी नहीं हो सकती है अभी । वह जब थमे तो ठीक से ईलाज शुरू हो । मैंने तो डॉक्टर से कह दिया है कि ऐसी स्थिति में इन्हें मरने की दवा दे देना क्योंकि ऐसे व्यक्ति के साथ अपनी ज़िंदगी लेकर जीना बहुत मुश्किल है ।' रित एक साँस में पूरी बात कह गयी थी । सुनकर शीला सन्न रह गयी थी । विम के ब्रेन हेमरेज की खबर सुनकर वह इतना आश्चर्य और दुःख से नहीं चौंकी थी जितना रित की कहनी से वह डर गयी थी । पिछले ही

।। परिभाषाओं से परे ।।

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प्रेम में व्यक्ति अपने प्रिय के लिए रचता है बाहर और भीतर एक नई दुनिया प्रेम के अनुकूल और उसके ही प्रेम से बनी जैसे कोरे काग़ज़ पर वह लिखता है प्रेम के लिए चिट्ठी प्रेम की सारी परिभाषाओँ से अलग । प्रेम की नई भाषा अपने अनोखे प्रिय के समर्पित प्यार के लिए वैसे ही वह उसके लिए बनाना चाहता है नया घर प्रेम-घर । अतीत के सभी चिन्हों को मिटाकर बीते हुए एकाकीपन से पियराये और गली हुई उदास साँसों से धुआँई दीवार पर अपने प्यार की चमकती साँसों से धवल कर देना चाहता है ज़िन्दगी के अकेलेपन की कालिख हुई दीवार को प्रिय के प्यार के सुख के लिए रचना चाहता है एक नया संसार जो किसी भी दुनिया से सुन्दर हो और उसके कहे की तरह विश्वसनीय प्रकृति की बदनीयती से भी बचाकर रखना चाहता है अपना प्यार प्रकृति की दैविक, दैहिक और भौतिक आपदाओं से परे रखना चाहता है वह अपना प्यार और प्रिय प्रकृति को सबसे सुन्दर सृष्टि के रूप में बचाए रखना चाहता है अपना प्रिय और उसके लिए प्रकृति प्

'विन्टरकोनिंग' कहानी का एक और अंश (4)

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पिता की देह में ही जिस माँ की जान थी और जीवन था वह माँ अब पिता के बिना अकेले वृद्धालय में रह रही हैं । उनके इस भीतरिया दुःख को शेखर और शीला अपनी रगों में महसूस करते हैं । शीला और शेखर रोज़ ही साँझ को समय निकाल कर उनके पास जाते हैं । यूरोपीय वृद्धालय का उबला हुआ खाना … माँ को भला कहाँ तक भाता होगा । यद्यपि बूढ़े लोगों का सारा खर्च सरकार उठाती है और प्रति बूढ़े व्यक्ति पर साढ़े तीन हज़ार यूरो हर माह खर्च करती है । ओल्ड हाउस में मनुष्यों की जरूरतों का बसा-बसाया कैम्पस-घर होता है । फिर भी दस-दस बच्चे पालने वाली माँ के लिए घर का कोना भी घर होता है । वह अपने लक्ज़री से पूर्ण कमरे से भी या तो हमेशा सड़क देखती रहती है या तो पाँचवीं मंजिल से झाँक-झाँक कर शेखर और शीला के आने की, पहचानने की कोशिश करती रहती है और अँधेरा होने पर अपने कमरे में अध-अँधेरा किये - दरवाज़े की ओर मुँह ताके आरामकुर्सी में बेचैन बैठी रहती है कि कब वे दोनों आयें और माँ के बुढ़ापे के अकेलेपन के अँधेरे को दूर करें । अपनी आँखों के उजाले से माँ की बूढ़ी आँखों में देखने की रोशनी दें । 'ममा' शब्द स

'विन्टरकोनिंग' कहानी का एक और अंश (3)

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शीला ने शेखर को याद दिलाया कि 'आज मेयर की वेलकम रिसेप्शन पार्टी में जाना है । शाम छह से आठ बजे के बीच का समय निर्धारित है । अभी घर चलकर फ्रेश-अप भी होना है ।' सुनते ही शेखर तेज क़दमों से अपनी कार की ओर बढ़ा । सौ से एक सौ बीस के आस-पास की एलाउड स्पीड से चलती हुई कार भी भीतर की हड़बड़ी के कारण रेंगती हुई महसूस हो रही थी । विन्टरकोनिंग के अपने घर से जल्दी से फ्रेश होकर … ड्रेस बदल कर शीला और शेखर सिटी सेंटर के रिसेप्शन हॉल पहुँचे । न कोई चेकिंग … न कहीं कोई किसी तरह की पुलिस … न कहीं मेटल डिटेक्टर … न कहीं पास । अख़बार में ख़बर थी कि जो भी मेयर से मिलना चाहता है उसका स्वागत है । हाउस इस ओपेन फॉर ऑल । खास लोगों के बीच आम लोगों की भीड़ शीला को मोहक लगी । वे दोनों ओवरकोट रखने के यार्ड की ओर बढ़े । अपने ओवरकोट दिए । शेखर ने 'नंबर-कार्ड' अपने कोट की जेब में डाल लिए । वाइन … शैम्प्येन, जूस ट्रे में लिए हुए टीन एज़र वेटर लड़की आयी । शेखर और शीला ने शैम्प्येन ली । चियर्स कहा और मेयर से हाथ मिलाने वाले लोगों की लाइन में खड़े हो गए । सिटी मेयर अपनी प

।। स्पन्दन ।।

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तुम ! मुझसे ज्यादा अकेले हो जबकि तुमसे अधिक मैं इंतजार करती हूँ तुम्हारा । हम खोज रहे हैं अपना-अपना समय एक-दूसरे की धड़कनों की घड़ी में । अपने समय को तुम्हारी गोद में शिशु की तरह किलकते हुए देखना चाहती हूँ । तुम्हारे ही अंश को तुम्हारी ही आँखों के सामने बढ़ते हुए देखना चाहती हूँ । प्यार से अधिक कोमल और रेशमी कुछ नहीं बचा है पृथ्वी पर जीने के लिए । तुम्हारी हथेली की अनुपस्थिति में छोटी लगती है धरती जिन हथेलियों में सकेल लिया करती थी भरा-पूरा दिन आत्मीय रातें बची हैं उनमें करुण बेचैनी सपनों की सिहरनें समुद्री मन की सरहदों का शोर । तुम्हारी आँखों में सोकर आँखें देखती थीं भविष्य के उन्मादक स्वप्न । तुम्हारे प्रणय-वक्ष में जीकर अपने लिए सुनी हैं समय की धड़कनें जो हैं सपनों की मृत्यु के विरुद्ध … ।

'विन्टरकोनिंग' कहानी का एक और अंश (2)

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"शीला बियर सिप करते हुए सोचने लगी । अभी कल ही तो वह गई थी एम्सटर्डम … । लाल स्टॉप लाइट पर उसने अपनी कार रोकी थी कि सड़क पार करने के पैदल चलने वाले रास्ते पर सामने ही यूरोपीय सज्जा में सजे दूल्हा और दुल्हन पैदल चल कर सड़क पार कर रहे थे । दुल्हन अपने दोनों हाथों से परियों जैसे सफ़ेद रेशमी परिधान को अपनी दोनों हथेलियों के चुटकी से उठाये हुए थी और दूल्हा पीछे से लम्बे फैले हुए सफ़ेद सर के ऊपर से उतरती हुई ओढ़नी और लहँगे के लरजते हुए घेरे को उठाये हुए था । उनके साथ दो जोड़ी दोस्त थे । संझाये सूर्य के प्रकाश में वह गौरी नवयौवना बाला का हल्का-सा मेकअप किया हुआ चेहरा और अधिक सुंदर लग रहा था । अपने प्रेम के राजकुमार का हाथ थामे हुए सड़क के जेब्रा लाइन पर चलते हुए दुल्हन के पाँव सड़क पर नहीं बल्कि गुलाब की सफ़ेद पंखुड़ियों पर पड़ रहे थे । धीरे से शीला की निगाह परियों वाले उस सफ़ेद ड्रेस से होती हुई उसके उदर पर पड़ी जो संभवतः आठ माह से अधिक के शिशु को गर्भ में लिए हुए अपने यार के विवाह के श्वेत रेशमी चमकदार परिधान में लुकाये हुए विश्वविजयी साम्राज्ञी की मुस्कान में सड़क

।। भोजपत्र पर ।।

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देह के भोजपत्र पर सांसें और स्पर्श लिखते हैं प्रणय का अमिट महाकाव्य ओठ छूट गये हैं मेरे अधरों में अपने निर्मल और उष्म स्पर्श के साथ तुम्हारे जाने के बाद एक आदमक़द आईने में बदल चुकी हूँ मैं । पृथ्वी का संपूर्ण प्रेम उमड़ आता है मेरे भीतर तुम्हारे होने पर कि पृथ्वी के सारे रत्न अंजलि में होते हैं झिलमिलाते आँखों में रहते हो रात-दिन अक्षय स्वप्नों के लिए सपनों तक पहुँचने का रास्ता ओठों ने खींचा है मन की धरती पर देह-भीतर रचते हो प्रेम की पृथ्वी खोलते हो देह जैसे गेह द्धार प्रणयातुर नयन खेलते हैं पर्वत श्रृंखला से हथेलियाँ भर उठती हैं देह-रेत से और रचती हैं घरौंदे सपनों के हथेलियाँ सिद्ध करना चाहती हैं साधना का सहज रसावेग अंतरंग के कैलाश पर्वत पर देह जानती है विदेह होने का सरस-आत्मीय सुख गुप्त गोदावरी के अंतस्थल में रखते हो अपनी अमृत बूँद प्रणय की पुनर्सृष्टि … ।

।। शब्दाशीष ।।

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मैं तुम्हारे ओठों का वाक्य हूँ ह्रदय की भाषा का सर्वांग तुम्हारे स्पर्श ने रची है प्यार की देह जो बोलती है मेरे भीतर तुम्हारे ही शब्द बनकर आँसू पोंछते हैं अकेलेपन के निशान कि कल को कहीं तुम्हारे साथ होने पर भी लौट न पड़े अकेलापन । आँसू की स्याही से शब्दों में रचती हूँ ईश्वर और अपने ईश्वर में गढ़ती हूँ आस्था का ईश्वर जिसकी धड़कनों के भीतर सुना है ईश्वर का संदेश प्रेम के शब्दों में … ।

।। प्रणय-वक्ष ।।

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आँखें एकनिष्ठ साधती हैं अपने प्रणय-गर्भ में तुम्हारी संवेदनाएँ तुम्हारा प्रेम प्रणय का ऋषि-कानन अनुभूतियाँ रचती हैं दुष्यंत और शकुंतला की तरह प्रणय का नव-उत्सर्ग गंदर्भ विवाह का आत्मिक संसर्ग सच्चाई की धड़कनों से गूँजता मनुष्यता की साँस से साँस खींचता प्रेम के लिए अपने प्राण सौंपता तुम्हारा प्रणय-वक्ष स्वर्ग का एक कोना जहाँ प्यार के लिए सर्वस्व समर्पण जहाँ बरसता है रंग बरखा की तरह ।

'विन्टरकोनिंग' कहानी का एक अंश (1)

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पुष्पिता अवस्थी जी ने कविता के साथ-साथ कहानी लेखन में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है । उनकी इसी पहचान की एक झलक को मेधा बुक्स प्रकाशक द्धारा प्रकाशित उनके कहानी संग्रह 'जन्म' की एक कहानी 'विन्टरकोनिंग' के इस एक अंश में यहाँ देखा/ पहचाना जा सकता है : 'मेयर की बगल में इनके सहयोग के लिए दो ऑफिस की उच्च पदस्थ महिलाएँ भी खड़ी थीं । उनके हाथों में बियर के गिलास थे …और होठों में मुस्कराहट । उनके चेहरे पर तनाव की कोई झलक नहीं थी और मेयर की बगल में खड़े होने का न कोई अतिरिक्त गर्व था । उनमें से एक शेखर को गहराई से पहचानती थी जबकि शेखर को ठीक से याद नहीं था । उसने गाल मिलाकर चूमते हुए शेखर को याद दिलाया और अपनी शर्ट पर लगे नाम की प्लेट उचककर शेखर की आँख के सामने कर दी । शेखर को अपनी इस भूल पर बहुत शर्मिन्दगी हुई । उससे शीला का परिचय कराया और अपने घर आने को आमंत्रित किया । सरकारी ….गैर-सरकारी और प्रेस फोटोग्राफर अपनी-अपनी तरह से तस्वीरें ले रहे थे । लेकिन इसको लेकर कहीं कोई कॉन्शसनेस नहीं थी और न ही अतिरिक्त मीडिया का दबाव था । शीला का हाथ