।। प्रतीक्षा के स्वप्न-बीज ।।
प्रतीक्षा में बोए हैं स्वप्न-बीज उड़ते सेमल के फाहों को समेटा है मुट्ठी में विरोधी हवाओं के बीच । आँसू ने धोई है - मन की चौखट और प्राणवायु ने सुखाई है - आँखों की जमीन । अधरों ने शब्दों से बनाई है अल्पना और धड़कनों ने प्रतीक्षा की लय में गाए हैं - बिल्कुल नए गीत । प्रतीक्षा में होती है आगमन की आहटें पाँवों की परछाईं हथेलियों की गुहारती पुकार आँखों के आले में प्रिय के आने का उजाला समाने लगता है और एक सूर्य-लोक दमक उठता है । प्रतीक्षा के सन्नाटे में कौंधती है आगमन-अनुगूँज शून्यता में तिर आती हैं पिघली हुई तरल आत्मीयता की लहरें । समाने लगता है अपने भीतर अमिट संसार आँखों में ...साँसों में पसीज आई हथेली में । आँखों की पृथ्वी पर होती हैं भाव-ऋतुएँ नक्षत्र से निखरते हैं तुम्हारे नयन निष्पलक चुपचाप परखती हैं आँखें अलौकिक प्रभालोक तुम्हारे प्रणय का अक्षय आकांक्षा-वलय ।