संदेश

फ़रवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।। आवाज ।।

चित्र
संपूर्ण देह को एक नया शब्द चाहिए आत्मा भी शामिल हो जिसमें और दिखाई दे जैसे देह में दिखाई देती हैं आँखें देह आत्मा की जरूरत नहीं समझती है । आत्मा का दुःख सिर्फ आत्मा जानती है और साँसों से कहती है सिर्फ ब्रह्माण्ड के लिए ।

।। देह प्रेम ।।

चित्र
देह प्रेम का भ्रम है देह प्रेम का छल है देह प्रेम का झूठ है देह प्रेम का दुःख है देह प्रेम की उलझन है देह प्रेम का स्वाद है क्षणिक ।

।। मौन प्रणय ।।

चित्र
मौन प्रणय शब्द लिखता है एकात्म मन उसके अर्थ मुँदी पलकों के एकांत में होते हैं स्मरणीय स्वप्न प्रेम अपने में पिरोता है स्मृतियाँ स्मृतियों में प्रणय प्रणय में शब्द शब्दों में अर्थ अर्थ में जीवन जीवन में प्रेम प्रेम में स्वप्न प्रणय रचे शब्दों में सिर्फ प्रेम होता है जैसे सूर्य में सिर्फ रोशनी और ताप ।

।। पीढ़ियों की तरह ।।

चित्र
कविताएँ शब्दों में अवतरित होने से पहले अवतार लेती हैं कवि के हृदय और मानस में कविताएँ मन की दीवारों के भीतर उकेरती हैं अपना अंतरंग अभिलेख कवि के चित्र को देती हैं संवेदनाओं का कोमलतम स्पर्श जहाँ से कवि रचता है   शब्दों को           नए सिरे से           नए ढंग से           नई रवायत से           नवीनतम तहजीब से कि उन्हीं शब्दों में आ जाता है   नया अर्थ कि अनुभव होता है कि जैसे शब्द भी जन्मते हैं नए शब्द           पीढ़ियों की तरह शब्दों की होती हैं  अपनी पीढ़ियाँ कविताओं के पास होती है शब्दों की अपनी वंशावली जिनका प्रवर्तक होता है कवि ।