संदेश

जनवरी, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।। प्रणय-मणि ।।

चित्र
वह आती है  हवाओं की तरह  और साँसों में होकर  अपनी विदेह देह को  सिद्ध करती है  प्रेम में  स्वयं सिद्धा है वह  पर, सहज ही दिखती नहीं है  प्रेम की तरह  लेकिन  अपनी अनुपस्थिति में भी  लिखती है अपने होने के कोरे शब्द  पाक-पृष्ठ की तरह  धवलता में  फड़फड़ाती है वह    हथेली के नीचे  और आँखों के बीच  वह लिखती है  सिर्फ़ लिखती है  देह कोश में शब्द कोश          अर्थ कोश          प्रणय कोश  उसके शब्दों की परछाईं में  प्रेम एक अस्तित्व बनकर आता है  वह बनती और बनाती है  प्रणय अस्मिता  जिसको हासिल करने में  अहम् की सारी परतें मिट जाती हैं  रह जाती हैं सिर्फ  चाँदनी रात में लिपटी हुई  मौन झीलें  बर्फ़ ढके शहर  कुछ ढहे हुए  स्वर्ण के पिघले हुए पहाड़  तूफान से पस्त हुआ समुद्र  और  मन-मंथन से  बाहर आई हुई  प्रणय मणि  पारस मणि से भी अधिक          प्रभावशाली ।   (हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)

।। प्रेम गढ़ता है ।।

चित्र
नेह-स्नेह बन उजाले की तरह भरता है मन गहवर धड़कनें बन जाती हैं  राग-धुन छोड़ती हैं पद-चिन्ह स्मृति पृष्ठों पर चित्त का आर्द्र भाव उतरता है चाँद की तरह अंतस के सर्वांग को चाँदनी में बदलते हुए उमंगें उठती हैं पैंगे बढ़ाकर बदल जाते हैं शब्द संवेदनाओं में .... शब्द       अनजाने ही       पिघलते हैं       ढलते हैं लेते हैं आकार       सौंदर्य में       स्पंदन में कि शब्दों की देह में धड़कने लगते हैं  अर्थ       प्राण सरीखे       ऐसे में       प्रेम गढ़ता है       अपने ही भीतर       स्वर्ण तप्त  अनुभूति कुंड । (हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)

।। धड़कनों की स्वर-लहरी ।।

चित्र
तुम्हारे स्वप्न  पहुँचते हैं         मेरे भीतर वहाँ  जहाँ          बनते हैं शब्द          मेरे ही पंचतत्वों से          देह-माटी के भीतर          दिया सरीखे  हृदय के आले में  धरने के लिए  प्रिय से अधिक  कुम्हार हो तुम  राँधते और गूँथते हो  मेरा सर्वस्व  देह के अदृश्य आँवे में  पकने के लिए  मैं  तुम्हारी तरह ही हूँ - तुममें  तुम्हारे वक्ष के कैनवास को  भरती हूँ - अपने रंगों से  तुम्हारी-उर लेखनी में है  मेरी संवेदनाओं की गीली स्याही  तुम्हारी हस्तलिपि में है  मेरी ही तासीर की नमी  स्मृतियों में  गूँजती-बजती है तुम्हारी शब्द-ध्वनि  नेह-धड़कनों की स्वर लहरी  (हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'भोजपत्र' से)