।। अनुपस्थिति के घर में ।।
तुम्हारी अनुपस्थिति के दुःख से जाना तुम्हारी उपस्थिति का सुख तुम्हारी अनुपस्थिति में बनता है मेरे भीतर सूनेपन का एकांत अकेलापन अपने प्रवास के कारण अतिथि नहीं रहता है डर दिशाओं का अँधेरा समेटकर गठरी बनाकर सिरहाने रखकर सुस्ताता है लोकव्यथा के शब्द बुदबुदाता सन्नाटे का भयानक शोर हदस की धुंध बनकर घुस आता है आँखों में अनुपस्थिति का सिर्फ कसैला कोहरा होता है जिसमें डर का घर नहीं दिखता है पर डर का घर होता है जिसमें घुटन बसती है तुम्हारी अनुपस्थिति में मन की पृथ्वी पर कोई सृष्टि नहीं होती है दृष्टि में सिर्फ पक्षियों की फड़फड़ाहट नदी का दुःख पेड़ का मौन सागर की बेचैनी तूफान की आग ऋतुएँ के मन की बंजर होने की खबर सिर्फ फैली-उड़ती दिखती हैं तुम्हारे जाने के बाद सुख में तब्दील हवा की हथेलियों के झोंके की अंजुलि में भरकर पहुँच जाना चाहती हूँ तुम्हारी साँसों में एक ऋतु के रूप में आकार लेकर एक ऋतु की तरह फैल जाना चाहती हूँ तुम्ह