।। नभ-संवाद ।।
आकाश बन जाता है शब्द बादल बरसता है जब हम सुनते हैं आकाश के शब्द । बूँदें गोदती हैं गोदना वसुधा की गदराई देह पर । मैना युगल धोते हैं सूर्याग्नि से अपने पंख और पीते हैं चोंच खोल मेघ जल नेवला धरती की कोख से बाहर काढ़कर आँखें देखता है सिर्फ बरसात और सुनता है मेघ-शोर । बरसात रुकने के साथ चुप हो जाता है आकाश । चिड़ियाँ बादलों के टुकड़ों को स्कार्फ-सा बाँध खेलती हैं जंगल के क्षितिज पर बादल के टुकड़े निचोड़े गए कपड़ों की तरह हवा की अरगनी में टंग जाते हैं जिन्हें फिर से सुखाने आ जाता है सूरज । अगली तारीखों की तरह जिनसे बचा नहीं पाती है कोरी मृत्यु भी ।