।। सूखी गंगा ।।
मेरे ओंठ में
सूख गई है नदी
अकेलेपन की रेत की
नदी है ओंठ
दो बूँद की प्यास में
देह को तपाते हुए
अँधेरे में बदल चुकी आँखों में
काले हो चुके हैं सपने
दिन की कोई रोशनी
कठफोड़वा की तरह
देह के तने में
नहीं बना पाती कोटर
भावी प्रकाश शिशु के प्रसव के लिए
दुनिया की
मांसाहारी दृष्टि से थक चुकी आँखें
तुम्हारी आँखों की गोद में
सिर रखकर
तुम्हारी देह की नदी में डूब कर
नहाते हुए विश्राम करना चाहती है
अगली सदी तक
तुम्हारी आँखों के साथ के रास्ते से
दौड़ने के लिए
पहुँचने के लिए
अपने हृदय की तरह
तुम बनाए रखना चाहते हो
तुम बनाए रखना चाहते हो
मेरा मन तन और समय
लाल स्याही की तरह
तुम्हारे ओठों ने भरी है
मेरे मन के पृष्ठों की माँग
जो मेरे तुम्हारे
संबंधों का
दस्तावेज है ऐतिहासिक
प्रणय-कथाओं से परे
नवीन प्रणय का
आधार पृष्ठ
ईश्वरीय कानून का
घोषित दस्तावेज
मेरे-तुम्हारे शब्द ।
('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह से)
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