।। तरंग ।।
जिंदगी
शैंपेन की एक बूँद
लेकिन,
तुम्हारे होने पर
अकेले में 'वह'
जहर की एक बूँद है
मौत के डर से भरी
जिंदा देह में
जिंदगी की मौत
अपने भीतर
एक 'मसान' तट
को जन्म देना है ।
मेरी ऑंखें
मछली की आँखों की तरह प्रूप-समुद्र
तैरती तुम्हारी आँखों के नॉर्थ-सी में
जहाँ से सूर्यास्ती-सिंदूर को
अपनी आँखों की चुटकी में लेकर
मेरे भाल पर
भरा था तुमने
संध्या के
सूर्यास्ती अग्नि-कुंड की
परिक्रमा की थी
मेरी हथेली ने
तुम्हारी हथेली की
भावी भाग्य रेखा में
पहनाई थी सूर्य रश्मियों से
लहरों में बनी तरंगित वरमाला
नॉर्थ-सी को
अपनी अँजुली में लेकर
तुम्हारी साँसों ने
कसम खाई थी
आजन्म-समुद्र की तरह
अपने प्यार से भर देने की
तुम
नॉर्थ-सी हो
और मैं तुम्हारे भीतर
समाई
तुम्हारे मन की
सामुद्री मछली
जिसकी आँखों और मन की
मौन की भाषा
पहचानते हो तुम ।
('रस गगन गुफा में अझर झरै' शीर्षक कविता संग्रह से)
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